"राम की शक्ति पूजा" की काव्यगत विशिष्टता ["raam kee shakti pooja" kee kaavyagat vishishtata] (आधुनिक हिंदी काव्य) IGNOU MHD 02 Free Solved Assignment

MHD - 02: आधुनिक हिंदी काव्य, IGNOU MHD
"राम की शक्ति पूजाकी काव्यगत विशिष्टता
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(5) "राम की शक्ति पूजा" की काव्यगत विशिष्टताओं पर प्रकाश डालिए (16)

उत्तर:- (i)"राम की शक्ति पूजा" की काव्यगत आधार :-

 "राम की शक्ति पूजा" एक संश्लिष्ट कविता है, जिसकी एक विलक्षण रूप है, तथा जिसमें नायक राम और कवि निराला का अंतरावलम्बन हुआ है, और जिसमें मिथकों के  व्याख्यात्मक प्रतीक आधुनिक संदर्भों में झिलमिला उठे हैं। "आज की अमानिशा "में राम की मनोभूमि का द्वंद युद्ध शुरू हो जाता हैं। सारा काव्य मिथक के प्रभामंडल में लिपटा हुआ होकर भी यथार्थता के सूर्य से ज्योतिर्गमय हो उठता है। काव्य के प्रधान मिथक में शक्ति पूजा के रुप में रहस्यवाद गुॅंथ जाता है, तथापि मिथक अन्तलीन नहीं हो पाती, अलबत्ता मिथकीय चेतना खंडित हो जाती हैं। मिथकीय चेतना के खंडित होने के साथ-साथ शक्ति के धार्मिक अर्थों के अलावा सामाजिक, ऐतिहासिक एंव मनोवैज्ञानिक, अर्थकदंब खिल उठते हैं। इस तरह यह कविता मिथक और रहस्य, धर्म और अतिप्राकृतिक पर आरुढ़ होकर भी समसामयिक यथार्थता का आख्यान  करती हैं।

"राम की शक्ति पूजा" तो महाकाव्यात्मक है और   काव्यात्मक नाटक बल्कि उनकी कविताओं में नाटकीयता की खूबियाॅं पायी जाती हैं। 'राम की शक्ति पूजा' काव्य भूमि पर चित्रकला, काव्यकला, नाटककला, संगीतकला आदि का निवेदन करने के कारण एक सशि्लष्ट कविता बन गई हैं। इसके विलक्षण रोमांटिक रूप की ही यह खुबी है कि इसके लगभग हरेक खंड में कला का नया प्रयोग हुआ है, पहला खंड में लौटती हुई वानर सेना भरवि के जैसे अर्थगौरव से गर्भित हैं। दूसरे खंड में लंका में बिताई गई रात के कालिदासीय दिवास्वप्न का चित्र हैं। तीसरा खंड हनुमान की अतिमानवीय शक्ति तथा अतिप्राकृतिक कार्यों से जुड़ा हैं। चौथे खंड में विभीषण और जाम्बवान की आत्मीय सलाहे है, और पांचवें खंड में राम द्वारा शक्ति की सांस्कृतिक कल्पना एवं तांत्रिक का साधना अंकन हैं। इस रचना के विलक्षण रूप के अन्तर्गत देखते है कि कई ढंग के मिथकीय पात्र कई ढंग से आए हैं। दो पात्र तटस्थ-क्षेत्र में आसीन है, वे विचारपक्ष का भव्य एंव उदात्त उत्कर्ष करते हैं। वे है हनुमान और दुर्गा। दो पात्र नेपथ्य क्षेत्र में रहते है, रावण और सीता। वे क्रमशः भावना क्षेत्र को तीव्र करते हैं। इनमें से खलनायक रावण अराधना से शक्ति को सिद्ध करके उसके माध्यम से सारे वातावरण में अंधकार धर्मी होकर हावी है, जबकि हनुमान अद्भुत एंव अलौकिक पक्ष है, तथा मानवीय एंव  रहस्यवाधक पक्ष है राम। इस भाँति राम एंव हनुमान के मेल से एक पूरे धीर नायकत्व 'दित्व' की प्रतिष्ठा होती है, तो रावण एंव शक्ति के मेल से अन्याय और अन्धकार फैलता हैं। संपूर्ण कविता में सूर्य और उद्धार तथा अन्धकार और पतन के बीच भी एक निरन्तर संघर्ष मचा हुआ हैं। 'कृतिवास' में रावण काली के कृपापात्र के रूप में अंकित हुआ है, जिससे राम चिंतित हो उठते है कि उनके द्वारा रावण संहार नहीं हो सकेगा और जनकनंदिनी सीता का उद्धार नहीं हो पाएगा। अतः विभीषण रामचन्द्र को चंडी आराधना करने का सुझाव देते है, और विभीषण ही हनुमान को देवीदह जाकर वहाॅं से नीलपद्म लाने का विमर्श देते है, जब राम दुर्गोत्सव करते है, तब महेश्वरी छल से एक पद्म हर लेती है, तभी राम निश्चय करते है कि जब सर्वजन उन्हें नीलकमलाक्ष कहते है तो क्यों हो अपना नीलोत्पल देवी को अर्पित करके संकल्प पूरा कर ले, जबकि यहाँ शक्ति की कल्पना धामिर्क एंव शाक्त होकर मौलिक अर्थात  सांस्कृतिक एंव प्रतीकात्मक हैं। इसी लड़ाई में "भागवत" में रावण वध का उपाय हैं। इसलिए शक्ति पूजा के जाम्बवान तथा 'कृतिवास' के विभीषण के बजाय नारद 'राम' को देवी के 'नवरात्रपूजन' का व्रत विधान बताते हैं। 

(ii) संवेदनात्मक उद्देश्य:-

"राम की शक्ति पूजा" का संवेदनात्मक उद्देश्य रचना के देश और काल तथा समाज में ही खोजा जा सकता हैं। रचना का पाठ यह बताता है कि राम और रावण के बीच एक समर चल रहा है, इस समर में राम को लगता है "मित्रवर विजय होगी समर" इसलिए क्योंकि शक्ति संतुलन रावण के पक्ष में है, "अन्याय जिधर है उधर शक्ति" कविता यह भी संकेत देती है कि यह समर किसके लिए लड़ा जा रहा है, "जानकी ! हाय उद्धार प्रिया का हो सका" यह लड़ाई प्रिया की मुक्ति की लड़ाई हैं। इस लड़ाई में विजय तब तक संभव नहीं जब तक शक्ति संतुलन रावण के पक्ष में हैं। 'अन्याय' को तब तक परास्त नहीं किया जा सकता, जब तक शक्ति संतुलन न्याय के पक्ष में हो जाये। यह सामरिक रणनीति का सार्वभौमिक सत्य हैं। यह कविता अपने देश और काल के संदर्भ में भारत की मुक्ति की लड़ाई से जुड़ जाती है, क्योंकि इसमें जिस शक्ति की प्रतीकात्मक पूजा हैं। वह अपने स्वरूप में भारतमाता की छवि हैं। असल में वह प्रतीकात्मक रूप में भारत की जनशक्ति है, जिसे न्याय के पक्ष में होना हैं। संपूर्ण भारत की जनशक्ति रावण के विरुद्ध खड़ी हो जाती है, तो उसी क्षण 'विजय' की आशा बलवती हो जाती हैं। इस तरह यह मुक्ति की लड़ाई हैं।

(iii) सार्वभौमिकता का तत्व :-

"राम की शक्ति पूजा" में देश, काल और अपने समाज का संदर्भ तो है ही, उसमें एक सार्वभौमिक सत्य भी छिपा हैं। हर बड़ी रचना के पीछे एक सार्वभौमिक सत्य भी होता हैं। यह कविता इस मिथ्या चेतना को तोड़ती है कि कोई  अवतारी देवता हमें मुक्ति दिलाता है, "संभवानी युगे-युगेका उद्घोष एक झूठ है, सच्चाई यह है कि शोषित जनशक्ति ही संगठित होकर संतुलन अन्यायपूर्ण व्यवस्था के पक्ष में होती है तो अन्याय की विजय होती रहती है, और जब यह शक्ति संतुलन न्याय की शक्तियों के पक्ष में होती है तो अन्याय से मुक्ति मिल सकती हैं।

ब्रिटिश शासक रूपी रावण के पक्ष में बहुत समय तक  भारत की जनशक्ति रही, किन्तु धीरे-धीरे भारतीय पूंजीपति के उदय के साथ यह जनशक्ति "राष्ट्रवाद" की नयी विचारधारा के प्रभाव में आकर "स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हैं" कि चेतना तक पहुंची। समानता, स्वतंत्रता, बंधुत्व के नये मानवीय मूल्यों के उद्घोष के साथ अन्यायपूर्ण व्यवस्था को खत्म कर दिया। जैसे-जैसे जनशक्ति के बड़े हिस्से इस संघर्ष के साथ जुड़ते गये, मुक्ति संग्राम में विजय की आशा भी बलवती होती गयी। जब जनशक्ति नेतृत्व के साथ होकर नया संतुलन बना देती है तो समर में विजय  अवश्य होती हैं। जब यह जनशक्ति, अन्याय की ताकतों के साथ भ्रमवश देती रहती है, मुक्तिकामी वर्गों का साथ नहीं देती, तब तक मुक्ति की ताकतों को शिकस्त मिलता है, तब- तक रह-रह उठता जग जीवन में रावण जय-भय। "राम की शक्ति पूजा" इसी सार्वभौमिक सत्य को एक मिथकीय  आख्यान के माध्यम से अभिव्यक्त करती हैं।

(iv) कविता का पाठावलोकन:-

"राम की शक्ति पूजा" कविता का पाठावलोकन अपनी संरचना में काफी संशि्लष्ट हैं। उसे मिथ, प्रतीक, बिंब, छंद, अलंकार और ध्वान्यात्मकता आदि उपकरणों से सजाया गया है, और मुक्तिकामी विचारधारा की आंच से प्रावधान बनाया गया हैं। इस कविता के केन्द्रीय बिम्ब 'ज्योति' और 'नयन' हैं। कविता की शुरुआत 'रवि हुआ अस्त / ज्योति से पत्र' से होती है और फिर एक ओर 'ज्योति को पत्र' पर लिखे "आज के समर" का वर्णन होता है, तो दूसरी ओर "लोहित लोचन रावण' हैं। राम की ऑंखो में अग्नि है, तो रावण की ऑंखो में लहू। एक दिन के इस युद्ध वर्णन के बाद शाम गहराती हैं। यह नैशाधंकार भी ज्योति के अभाव का ही दूसरा रूप हैं। इस अंधकार में दूर कहीं, ताराऍं चमक रही है, ज्योति पूरी तरह नदारद नहीं है, आशा की किरण समाप्त नहीं हैं। चारों ओर अंधेरा है, मगर कहीं कहीं आशा की ज्योति भी जल रही हैं।

"है अमानिशा उगलता गगन घन अंधकार 

 खो रहा दिशा का ज्ञान, स्तब्ध है पवन चार"

'नैशाधंकार' में 'चमकती दूर ताराऍं प्रकाश की झीनी किरण है, ये शायद मुक्ति की आशा लगाये सीता की ऑंखें है, लेकिन मात्रात्मक रुप में अंधकार ज्यादा हैं। अंधकार और प्रकाश के इस युद्ध में प्रकाश कमजोर जरूर हैं। अपनी प्रिया की मुक्ति का विचार ही वह प्रेरक प्रकाश है, जो मन को दीप्त करता हैं।

"ऐसे क्षण अंधकार घन में जैसे विद्युत 

 जावी पृथ्वी तनया कुमारिका छवि अच्युत"

प्रकाश के इस बिंब के साथ ही 'नयन' का यानी दृष्टि का  बिम्ब प्रकाश भी जाता हैं। प्रकाश हो भी और 'नयन' हो तो प्रकाश का अस्तित्व सार्थक नहीं हो सकता। यह सत्य है कि मुक्ति के संघर्ष में ज्ञान होते हुए भी यदि दृष्टि नहीं तो सारा संधर्ष निष्फल हो जाता हैं। मुक्ति समर की इस कविता में इसलिए इन दोनों बिबों यानी 'प्रकाश' और 'नयन' का विशेष महत्व हैं।

राम को जब 'जानकी नयन कमनीय' की स्मृति भी आती और 'जानकी नयन' राम को वर्तमान तक ले जाते हैं। आज का रण सामने जाता हैं। इस परिस्थिति में रावण पर विजय पाना आसान नहीं, शक्ति संतुलन उसके पक्ष में है, इस शंकाकुल स्थिति में "खिंच गये दृगों में सीता के राममय नयन" और फिर "भक्ति नयनों से सजल गिरे दो ऑंसूओं के" हनुमान ने उन नयनों को देखा "देखा कपि ने, चमके नभ में ज्यों तारा दल" राम की ऐसी व्याकुल स्थिति देखकर हनुमान पंचतत्वों को समन्वित करके उस महाशक्ति से टक्कर लेने के लिए महाकाश में पहुंचते है, जो रावण को  सुरक्षा प्रदान किये हुये हैं। रावण के पक्षधर शक्ति को "श्यामा विभावरी अंधकार" कहा गया है, जाहिर है कि अज्ञान के अंधकार में डूबी जनशक्ति ही अन्याय का जाने- अनजाने पक्ष लेती है, जबकि न्याय के पक्ष का जिसका प्रतिनिधित्व राम करते हैं। हारते हुए देखकर जो कपि विचलित हो रहे है, उसे "रुद्र राम पूजन प्रताप तेज प्रसार" कहा गया है, जो कि ज्योति का ही एक रूप हैं।

निराला बार-बार नयनों का बिम्ब लाते है, वामा के नयनों में आग जलती दिखायी दे रही हो, तो राम का 'त्रस्त्र' दोनों स्वाभाविक ही हैं। जाम्बवान राम को इसका उपाय सुझाते हैं।

"विचलित होने का नहीं देखता मैं कारण 

 हे पुरुषसिंह तुम भी यह शक्ति करो धारण 

 शक्ति की करो मौलिक कल्पना करो पूजन 

 छोड़ दो समर जब तक सिद्धि हो रघुनन्दन"

"शक्ति की मौलिक कल्पना" का यही अर्थ है कि मुक्तिकामी नेतृत्व को भारत की जनशक्ति की आराधना करके उसे अपने पक्ष में करना होगा। यह पूजा उस जनशक्ति के लिए जिनको साथ लिये बगैर कोई भी मुक्तिकामी नेतृत्व लड़ाई जीत नहीं सकता। कोई एक व्यक्ति चाहे वह अवतारी पुरुष ही क्यों हो अकेले या जनशक्ति को अपने पक्ष में किये बगैर सत्ता हासिल नहीं कर सकता हैं। राम ने शक्ति की पूजा शुरू की, "कर जप पूरा कर एक चढ़ाते इंदीवर" जब पूजा की प्रक्रिया पूरी होने जा रही थी, कि तभी दुर्गा अंतिम कमल उठा ले गयी। राम की साधना की परीक्षा होनी ही थी। देवी पर कमल चढ़ाने का उपाय राम को सूझ गया।

"यह है उपाय 'कह उठे राम ज्यों मंद्रित घन

 कहती थी माता मुझे सदा राजीव-नयन 

 दो नील-कमल हैं शेष अभी यह पुरश्चरण  

 पूरा करता हूँ देकर मात एक नयन"

राम अपने एक 'नयन' को बाण से निकालने को उद्यत होते है कि शक्ति की अराधना के लिए बलिदान -

"ले अस्त्र वाम कर, दक्षिण कर दक्षिण लोचन 

 ले अर्पित करने का, उद्यत हो गये सुमन "

बलिदान की इस भावना से शक्ति राम पर प्रसन्न हो गयी, उन्होंने प्रकट होकर राम का हाथ थाम लिया। राम ने इस शक्ति को देखा। इस शक्ति को कविता में "ज्योतिर्मय रूप" कहा गया है। इस शक्ति ने राम हो कहा – "होगी जय, होगी जय, हे पुरुषोत्तम नवीन" और यह कहकर "महाशक्ति" राम के बदन में लीन हुई।

(v) सारांश:-


इस तरह "राम की शक्ति पूजा" अपने पूरे कलात्मक सौंदर्य के साथ अपने युग के सामाजिक सत्य से जुड़ती है, जिसे असत्य के उपर सत्य की विजय के लिए हर बार अपनाना पड़ेगा। असत्य के खिलाफ विजय तभी हासिल हुयी जब भारत की जनशक्ति नेतृत्व के साथ हो गयी जब तक शोषित जनता बड़े पूँजीपतियों, भूस्वामियों के राजनीतिक, वैचारिक नेतृत्व के चंगुल में फॅंसी रहेगी, तब तक शोषणाविहीन समाज बनाने वाली शक्तियों की विजय संभव नहीं। इसलिए सर्वहारा वर्ग को भी शक्तिपूजा की मौलिक कल्पना करनी पड़ती हैं। सारी क्रांतियों का इतिहास इस बात का साक्षी हैं। "राम की शक्तिपूजा" इसी ऐतिहासिक अनुभव को काव्यात्मक स्तर पर प्रस्तुत करती हैं। संवेदनात्मक स्तर पर समाहित यह सार्वभौमिक साथ ही इस रचना को महान बनाती हैं।

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